रिपोर्टर – तुलसी साहू
नालियां नदारद, सड़कें गड्ढों में गुम, पानी की किल्लत और शिक्षा का अंधकार
बलौदा बाजार, पलारी:
पलारी ब्लॉक के ग्राम पंचायत ठेलकी की बदहाल स्थिति छत्तीसगढ़ सरकार के विकास के दावों पर बड़ा सवालिया निशान लगाती है। जहाँ एक ओर प्रशासन ‘विकास की गाथा’ गा रहा है, वहीं जमीनी सच्चाई यह है कि गाँव की गलियाँ दलदल में डूबी हैं, सड़कें गड्ढों में गुम हो चुकी हैं और पीने के पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत भी एक ‘सपना’ बनकर रह गई है।
गंदगी, जलभराव और बीमारियों का डर
गाँव में नालियों का अभाव इतना गंभीर है कि गंदा पानी गलियों में जमा होकर दुर्गंध और बीमारियों का कारण बन रहा है। बरसात में हालात और बदतर हो जाते हैं – हर गली कीचड़ में तब्दील हो जाती है और ग्रामीणों का चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है। मुख्य मार्ग, जो ठेलकी को अन्य गाँवों से जोड़ता है, पूरी तरह गड्ढों और दलदल में खो चुका है। यात्री वाहन, स्कूली बच्चे और बुजुर्ग जान जोखिम में डालकर रोज़ उस रास्ते से गुजरते हैं।
शिक्षा की बदहाली: दो शिक्षक, 74 छात्र
गाँव का प्राथमिक विद्यालय भी दुर्दशा की मिसाल बन चुका है। जहाँ 74 छात्रों पर केवल दो शिक्षक कार्यरत हैं, वहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उम्मीद बेमानी हो जाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार प्रत्येक 29 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन ठेलकी में यह अनुपात लंबे समय से उपेक्षित है।
विद्यालय के ठीक सामने कचरे का ढेर बच्चों और शिक्षकों को साँस लेने तक नहीं दे रहा। बदबू और गंदगी के बीच पढ़ाई का कोई माहौल नहीं है। कई बार शिकायतों के बावजूद पंचायत ने अब तक कोई सफाई अभियान नहीं चलाया।
“हर घर नल जल” योजना फेल – महिलाएं पानी ढोने को मजबूर
सरकार की बहुप्रचारित “हर घर नल-जल” योजना भी ठेलकी में दम तोड़ चुकी है। महीने में कुछ ही दिनों पानी आता है, बाकी समय महिलाओं को दूर-दराज़ से पानी लाना पड़ता है। ये हालात सिर्फ जीवन को कठिन नहीं बनाते, बल्कि सरकार की योजनाओं की पोल भी खोलते हैं।
गंदगी से जूझता साप्ताहिक बाजार
गाँव का साप्ताहिक हाट-बाज़ार भी गंदगी और बदइंतज़ामी की तस्वीर पेश करता है। कचरे के ढेर और कीचड़ में व्यापारियों और ग्राहकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। गाँव की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाला यह बाज़ार भी उपेक्षा की भेंट चढ़ चुका है।
श्मशान घाट – जहाँ अंतिम यात्रा भी असहनीय बन जाए
गाँव का श्मशान घाट बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। न तो वहाँ शेड है, न बैठने की व्यवस्था। अंतिम संस्कार के समय ग्रामीणों को खुले आसमान के नीचे, बारिश और धूप में बैठने को मजबूर होना पड़ता है। इस रास्ते पर वर्षों पहले बने शौचालय आज तक चालू नहीं हो पाए हैं – ये निर्माण अब सिर्फ फोटो खिंचवाने और आंकड़ों में गिनने भर के लिए हैं।
प्रशासनिक दौरे, लेकिन कोई समाधान नहीं
हालाँकि क्षेत्र के सीईओ द्वारा गाँव का कई बार निरीक्षण किया गया, लेकिन ज़मीनी स्तर पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया


